Life Shayari

Kashti Ke Musafir Ne Samandar Nahi Dekha,
Aakhon Ko Dekha Per Dil Mein Utr Kar Nahi Dekha,
Pathar Samajhate Hain Mujhe Mere Chahne Wale,
Hum Toh Mom Hain Kisi Ne Chhoo Kar Nahi Dekha …

मुझे ज़िंदगी का इतना तजुर्बा
तो नहीं है दोस्तों,
पर लोग कहते हैं
यहाँ सादगी से कटती नहीं।
अब समझ लेता हूँ
मीठे लफ़्ज़ों की कड़वाहट,
हो गया है ज़िंदगी का
तजुर्बा थोड़ा थोड़ा।
हर बात मानी है
तेरी सिर झुका कर ऐ ज़िंदगी,
हिसाब बराबर कर तू भी
तो कुछ शर्तें मान मेरी।
अकेले ही गुजर जाती है 
तन्हा ज़िंदगी,
लोग तसल्लियाँ तो देते हैं 
साथ नहीं देते।
ज़िंदगी जिसका बड़ा नाम सुना है हमने,
एक कमजोर सी हिचकी के सिवा कुछ भी नहीं।
ये कशमकश है
कैसे बसर ज़िंदगी करें,
पैरों को काट फेंके
या चादर बड़ी करें।
नफरत सी होने लगी है
इस सफ़र से अब,
ज़िंदगी कहीं तो पहुँचा दे
खत्म होने से पहले।
इक टूटी-सी ज़िंदगी को समेटने की चाहत थी,
न खबर थी उन टुकड़ों को ही बिखेर बैठेंगे हम।
समंदर न सही पर एक नदी तो होनी चाहिए,
तेरे शहर में ज़िंदगी कहीं तो होनी चाहिए।
जीवन का एक अलग तरीका है ...
आदमी की खातिर कांटे भी कबूल हैं ...
मुझे कांच के टुकड़ों पर भी हंसने दो…
अगर आदमी कहता है ये मेरे फूल हैं!
डार मुजे भी लागा फौसला देख कर,
प्रति मुख्य बधता गया दे दे कर,
खुदा बा खुद मेरे नज़दिक आति गायि,
मंजिल मेरा हौंसला देख कर…।
Kashti Ke Musafir Ne Samandar Nahi Dekha,
Aakhon Ko Dekha Per Dil Mein Utr Kar Nahi Dekha,
Pathar Samajhate Hain Mujhe Mere Chahne Wale,
Hum Toh Mom Hain Kisi Ne Chhoo Kar Nahi Dekha …